वास्तुशास्त्र के अनुसार पूजा घर कहाँ होना चाहिए?

वैदिक परंपरा में पूजा करने के कई तरीके हैं,जिनको 16 श्रेणियों में विभाजित किया गया है शास्त्रों में कहा गया है कि देवता की प्रकृति विभिन्न शक्तियों का प्रतिनिधित्व करती है। इसलिए देवताओं का आशीर्वाद पाने के लिए एक आदर्श स्थान पर पूजा  से सही लाभ और मन की शांति प्राप्त करना अति आवश्यक है।

 

पूजा से मनचाहा लाभ पाने के लिए और उससे संबंधित देवताओं का आशीर्वाद पाने के लिए उस विशेष दिशा में ही उनकी पूजा करनी चाहिए।

 

हर दिशा के कुछ अपने खास देवता है,जो उस दिशा के प्रजापति होते हैं और जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करते हैं। इसलिए शास्त्रों में यह सलाह भी दी गई है कि विभिन्न तरह की पूजा उनके संबंधित क्षेत्रों में ही की जाए।

 

अलकेमी की दिशाओं के मुताबिक़ मंदिर या पूजाघर अथवा ध्यान करने की जगह जिस ज़ोन में होगी, उस दिशा क्षेत्र की शक्ति के गुणों के अनुरूप ही आपका ध्यान होगा, वास्तव में पूजास्थल एक ऐसा स्थान है, जहां बैठकर हम ग्रहणशील हो जाते या रिसेप्टिव हो जाते हैं।

 

तो जानिए वास्तु ज़ोन के अनुसार उत्तर-पूर्व दिशा में पूजा करने के लाभ_

  • अलकेमी की दिशाओं में उत्तर-पूर्व वह दिशा है जो हमारी आंतरिक ग्रहणशीलता एवं प्रज्ञा को संचालित करती है,यह ध्यान के लिए भी आदर्श स्थान है।
  • उत्तर पूर्व के कोने में प्राकृतिक रूप से एक विशेष ऊर्जा मिलती है, यह ज़ोन विज़न, प्रेरणा, दूरदर्शी आदि का क्षेत्र भी माना जाता है।
  • नए विचार और समस्याओं को सुलझाने के लिए हमें जो शक्ति चाहिए,वो सब हमें उत्तर-पूर्व दिशा के माध्यम से प्राप्त होती है।
  • मानसिक स्पष्टता और प्रज्ञा के लिए उत्तर-पूर्व सही स्थान है यहाँ पूजा करने से हमेशा परमात्मा का मार्गदर्शन मिलता रहता है और भवनों को आशीर्वाद मिलता है।

 

वास्तु दिशाओं के अनुसार नए विचार,सोच और बोध का आभास उत्तर-पूर्व दिशा से आता है,हर नया विचार अपने भीतर कोई न कोई इच्छा समेटे होता है। इसे हम आइडिया कहते हैं पर यह आइडिया हर किसी को नहीं आते हैं यह विचार उन लोगों को आते हैं जिसमें इसको ग्रहण करने वाला मन होता है।

 

साथ ही उत्तर-पूर्व दिशा स्पष्टता,आंतरिक ग्रहणशीलता एवं प्रज्ञा को संचालित करता है। इसलिए इष्ट देवताओं के साथ सूक्ष्म कनेक्टिविटी और अंतरात्मा से जुड़ाव के लिए उत्तर-पूर्व में पूजा का स्थान बनाना चाहिए।

 

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